कलकत्ता ग्रुप- 43

कलकत्ता ग्रुप 43 की स्थापना मूर्तिकार प्रदोष दास गुप्ता ने 1943 ई. में की थी।

बंगाल दुर्भिक्ष के समय कलकत्ता ग्रुप की स्थापना हुई थी।

कलकत्ता ग्रुप में आठ कलाकार थे- प्रदोष दास गुप्ता, शुभो टैगोर, गोपाल घोष, निरोद मजूमदार, हेमन्त मिश्र, पारितोष सेन, रथिन मित्रा, जैनुअल आवेदीन।

कालान्तर में राम किंकर बैंज, गोवर्धन एश. अवनी सेन, सुनील, माधव सेन, ने इस गुप से जुड़े।

कलकत्ता ग्रुप की प्रथम प्रदर्शनी 1944 ई. में मिसेज कैसी के प्रयत्नों से मुम्बई में हुई।

कलकत्ता ग्रुप की दूसरी प्रदर्शनी 1945 ई. में मुम्बई में हुई।

ग्रुप की तीसरी कला प्रदर्शनी 1950 ई. में प्रोग्रेसिव आर्ट्रिस्ट ग्रुप मुम्बई (1947 ई. में स्थापित) के साथ मुम्बई में हुई।

कालान्तर में कलकत्ता गुप के सदस्य विभिन्न स्थानों पर कार्यरत हो गये, तथा धीरे-धीरे यह ग्रुप विघटित हो गया।

कोलकाता में अन्य अनेक कलाकार नित नवीन सम्भावनाओं को सशक्त बनाने में प्रयासरत थे।

इन कलाकारों में सत्येन्द्रनाथ घोषाल, अतुल बोस, समर घोष, विमलदास गुप्ता, दिलीप दास गुप्ता, हरेनदास, प्राणकृष्ण पाल, कल्याण सेन, गोबर्धन एश धीरेन्द्र, ब्रह्म आदि प्रमुख हैं।

प्रदोष दास गुप्ता ( 1912-1991 ई.)

मूर्तिकार प्रदोष दास गुप्ता का जन्म 1912 ई. में ढाका (वर्तमान बांग्लादेश) में हुआ था।

प्रदोष दास गुप्ता ने मूर्तिकला की शिक्षा आरम्भ में कलकत्ता में हिरण्यमय राय चौधरी से तथा चेत्रई में देवी प्रसाद राय चौधरी के निर्देशन में हुई।

बंगाल स्कूल की रूढ़िबद्ध परम्परा के विरुद्ध ‘प्रदोषदास गुप्ता’ ने 1943 ई. में कलकत्ता ग्रुप-43 की स्थापना की।

पेरिस में मूर्तिकला के अध्ययन हेतु गये, जहाँ आपने काँस्य ढलाई का विशेष अध्ययन किया।

प्रदोष दास गुप्ता अधिकांशतः काँसे, प्रस्तर, व टेराकोटा शिल्प गढ़े।

प्रदोषदास गुप्ता ब्रिटिश मूर्तिकार हेनरीमूर से प्रभावित थे।

1957 ई. में प्रदोषदास गुप्ता को ‘नेशनल गैलरी ऑफ माडर्न आर्ट’ नई दिल्ली का क्यूरेटर नियुक्त किया गया।

प्रदोषदास गुप्ता यूरोपीय कलाकारों से प्रेरणा लेते हुए 1912 में मौलिक आकारों (वृत्त, अण्डाकार समभुज, त्रिभुज) में आदि का प्रयोग किये।
पालना, माँ व पुत्र तथा पृथ्वी माता, उल्लेखनीय कृतियाँ रही।

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